कांशीराम साहब का बहुजन समाज के लिए संघर्ष”
“कांशीराम साहब का बहुजन समाज के लिए संघर्ष”
स्मृति दिवस पर विशेष
जन्म:- 15 मार्च 1934
परिनिर्वाण:- 9 अक्तूबर 2006
जीवनकाल:- 72 वर्ष 6 महीने 24 दिन
जन्म स्थान:- रोरापुर, बंगा साहिब (रोपड़)
(साहिब की ननिहाल)
पैतृक गांव ख़ुवासपुर, रोपड़, पंजाब.
💎”व्यवसाय:- राजनेता.”
कांशी राम एक भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने अछूतों और दलितों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए जीवन पर्यान्त कार्य किया। उन्होंने समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए एक ऐसी जमीन तैयार की जहा पर वे अपनी बात कह सकें और अपने हक़ के लिए लड़ सके। इस कार्य को करने के लिए उन्होंने कई रास्ते अपनाए पर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम था। कांशी राम ने अपना पूरा जीवन पिछड़े वर्ग के लोगों की उन्नति के लिए और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज़ देने के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन अविवाहित रहे और अपना समग्र जीवन पिछड़े लोगों लड़ाई और उन्हें मजबूत बनाने में समर्पित कर दिया।
💎”प्रारंभिक जीवन :-“
कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोरापुर में एक रैदासी सिख परिवार में हुआ था। यह एक ऐसा समाज है जिन्होंने अपना धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाया था। कांशी राम के पिता अल्प शिक्षित थे लेकिन उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि अपने सभी बच्चों को उच्च शिक्षा देंगे। कांशी राम के दो भाई और चार बहने थीं। कांशी राम सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े और सबसे अधिक शिक्षित भी। उन्होंने बी एससी की पढाई की थी। 1957 मे स्नातक होने के बाद कांशी राम पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए।
💎”कार्यकाल :-“
1964 में उन्होंने डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश रद्द करने के विरोध में संघर्ष किया। इस घटना के बाद उन्होंने पीड़ित समाज के लिए लड़ने का मन बना लिया। उन्होंने संपूर्ण जातिवादी प्रथा और डॉ बी. आर. अम्बेडकर के कार्यो का गहन अध्ययन किया और अछुतो के उद्धार के लिए बहुत प्रयास किए। आख़िरकार, सन 1964 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने एक सहकर्मी के साथ मिलकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की।
💎 “राजनीति में योगदान:-“
अपने सामाजिक और राजनैतिक कार्यो के द्वारा कांशी राम ने निचली जाति के लोगो को एक ऐसी बुलंद आवाज़ दी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
💎 “विरासत :-“
कांशी राम की सबसे महत्वपूर्ण विरासत है उनके द्वारा स्थापित किया गया राजनैतिक दल – बहुजन समाज पार्टी। उन के सम्मान में कुछ पुरस्कार भी प्रदान किये जाते हैं। इन पुरस्कारों में कांशी राम आंतर्राष्ट्रीय खेल कूद पुरस्कार (10 लाख), कांशी राम कला रत्न पुरस्कार (5 लाख) और कांशी राम भाषा रत्न सम्मान (2.5 लाख) शामिल हैं । उत्तर प्रदेश में एक जिले का नाम कांशी राम नगर रखा गया है। इस जिले का नामकरण 15 अप्रैल 2008 को किया गया था।
😥😥 2006:- 9 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से उनका परिनिर्वाण हो गया।
“कांशीराम साहब के जीवन के कुछ बहुत दुःख भरे व महत्वपूर्ण और प्रेरणा दायी पल”😥😥😥
*💎💎 बात उन दिनों की है, जब मान्यवर कांशीराम जी बहुजन समाज को संगठित करने के लिए फूले, शाहू, अंबेडकर की विचारधारा को साथ लेकर संघर्ष कर रहे थे। उस समय उनके पास न पैसा था और न आय का कोई स्त्रोत। किसी फकीर की भांति वे दर-बदर घूमते रहते थे। जब जहां शाम हो जाती, वहीं ठिकाना बना लेते थे। जो भी साथ मिला उसके साथ घूमते थे। जिसके यहां जगह मिली, वहां विश्राम कर लेते थे। उनकी अथक मेहनत जारी थी। कभी-कभार तो उन्हें भूखे रहना पड़ता था। जेब में दो-चार रुपये पाए गए तो चौराहे पर लगी दुकान से भजियां या मुंगबड़े खाकर और ऊपर से दो गिलास पानी पीकर पेट की आग बुझा लेते थे।*
👉 कपड़े फटे रहते थे। पैर की चप्पल पूरी तरह घिस जाने पर भी बदली नहीं जाती थी। साहब के परिश्रम की कोई सीमा नहीं थी। आज भी उनके नाम औऱ काम से उर्जा मिलती है। कुछ लोग उनकी समाज जागृति की भावना को समझते थे। ऐसे लोग ही उनका ख्याल रखते थे। किसी को फटी कमीज नजर आई तो वह दुकान से सस्ती कमीज लाकर उन्हें दे देता। कभी पैंट फटी दिखी तो पैंट लाकर देता था।
😥एक समय ऐसा भी आया जब नई बनियान खरीदने के लिए मान्यवर कांशीराम जी के पास पैसे नहीं थे, मगर अंतर्वस्त्र तो किसी को दिखाई नहीं देते। कांशीराम जी के पास केवल दो बनियान थी औऱ दोनों इस कदर फट चुकी थीं कि उनको बनियान के बजाय चीथड़े कहना ज्यादा उचित होगा। उनमें कपड़े कम रह गए थे औ छेद ज्यादा थे। नई बनियान खरीदने के लिए भी मान्यवर कांशीराम जी के पास पैसे नहीं थे, मगर मन का दर्द बताएं तो किसे। उनका मन स्वाभिमानी था औऱ इस स्वाभिमानी मन को लाचार होकर किसी के आगे हाथ फैलाना कतई मंजूर नहीं था। मन और तन तो केवल शोषित, पीड़ित समाज का उत्थान करने हेतु कार्य कर रहा था। एक दिन की घटना है नहाने के बाद उन्होने अपनी बनियान कमरे के बाहर सुखाने के लिए रखी। उसी समय कोई कार्यकर्ता उनसे मिलने उनके करोल बाग के कमरे में आया था। उस कार्यकर्ता ने जब उस चिथड़े हो चुके बनियान को देखा तो उन्हें लगा किसी ने शरारत करने के लिए यह फटी बनियान तार पर रख दी होगी। गुस्से से वह चिल्लाया-अरे! किसकी शरारत है? फेंक दो उस फटे वस्त्र को। कमरे में बैठे कांशीराम जी को आवाज सुनाई दी। तत्काल दौड़कर वे दरवाजे पर आए और कहा-अरे भाई!! उसे फेंको मत वह मेरी बनियान है। साहब की बात सुनकर कार्यकर्ता के आंखों में आंसू तैर आए। हजारों दिलों पर राज करने वाला समाज का वह बादशाह अपने लिए ढंग का एक अंत: वस्त्र नहीं खरीद पा रहा था। मान्यवर कांशीराम जी का वह त्याग देख कार्यकर्ता का दिल भर आया। वह कार्यकर्ता उल्टे पांव वापस लौटा। बाजार में जाकर उसने नई बनियान की जोड़ी खरीदी और साहब के सामने रख दिया। उसके आंसुओं की कद्र करते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ मान्यवर कांशी जी बोले-भाई! अभी आप वह फटी बनियान फेंक सकते हो।आज कल्पना की ऊंची उड़ान भरने के बावजूद हम मान्यवर कांशीराम जी द्वारा झेले गए कष्ट और परिश्रम की कल्पना नहीं कर सकते। कल्पना बौनी हो जाएगी। उनके परिश्रम को नापने का कोई भी मापदंड आज भी मौजूद नहीं है। उनके कष्ट, उनका परिश्रम, उनकी आकांक्षा, उनके प्रयास, उनका साहस, उनकी निष्ठा, उनका आत्मविश्वास हर ऊंचाई से ऊपर है। कदम-कदम पर ठेस खाने पर भी चेहरी की मुस्कान में दरार नहीं पाई गई।प्रस्थापित उच्च वर्णियों ने तो उनके खिलाफ जेहाद छेड़ दिया. किंतु अपनों ने भी कम जुल्म नहीं ढाए, मगर पत्थर का दिल बनाकर उन्होने अपना सीना कभी छलनी नहीं होने दिया। मंजिल को पलभर के लिए भी विस्मरण नहीं होने दिया। अंर्तचेतना को एक पल भी नहीं सोने दिया। दुखी मन को बूंद भर आंसुओं के साथ नहीं रोने दिया।
💎💎 ऐसे थे मान्यवर कांशीराम और ऐसा था उनका त्याग।
💎💎 मान्यवर कांशीराम साहब से हमारे बहुजन समाज के युवा उनके जीवन संघर्ष से कुछ सीखेंगे।
*ऐसी महान विभूतियो को कोटि - कोटि नमन वन्दन...!!!*
मान्यवर कांशीराम साहब के स्मृति दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि !!!
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