बोले मनमोहन सिंह-पढ़े लिखे भी करते किसानों की तरह आंदोलन तो नहीं होता निजीकरण
Former PM Manmohan Singh said - educated class should agitate on the lines of farmers to stop privatization
22 नवंबर 21
नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोनहन सिंह ने किसान आंदोलन की कामयाबी का समर्थन करते हुए शिेिक्षत वर्ग से आंदोलन करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि पढ़े-लिखे लोग भी किसानों की तरह आंदोलन करते तो सरकारी सम्पत्ति की बिक्री और निजीकरण नहीं होता। उन्होंने सरकार के निजीकरण और सरकारी संपत्ति को निजी हाथों में दिए जाने का विरोध जताया है।
तेजी से रहा है देश में निजीकरण
केंद्र सरकार ने बस अड्डों के निजीकरण के साथ रेलवे का निजीकरण भी तेज कर दिया है। इंडियन एयरलाइंस को भी निजी कंपनी को सौंपा जा चुका है। इसी तरह कई और सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में देने की योजना सरकार ने बनाई है। हालत यह है कि बैंकों का भी निजीकरण करने की चर्चा चल रही है। सरकार के इस फैसले को लेकर जनता में मिश्रित प्रतिक्रिया आ रही है। बड़ी संख्या में लोग इसका विरोध कर रहे हैैं तो कुछ लोग सरकार के निजीकरण के फैसले को सही ठहराने पर भी लगे हुए हैं। बहरहाल देश सरकार के सभी फैसलों पर निगाह रके हैं और आंकलन कर रहा है।
मनमोहन ने उठाया नौकरी का मुद्दा
दुनिया के प्रख्यात अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को दो ट्वीट किए हैं जिसमें उन्होंने एक ट्वीट में किसान आंदोलन पर तत्कालीन कृषि मंत्री के उस बयान पर सवाल उेठाया है जिसमें उन्होंने कहा था कि भीड़ एएकत्र करने से कोई कानूून बदलते हैं। मनमोहन सिंह ने जवाब दिया है कि भीड़ से कानून ही नहीं, सरकार भी बदल जाती है। उन्होंने एक और ट्वीट किया है जिसमें कहा है कि किसानों की तरह पढ़े-लिखे लोग भी सड़कों पर आ जाते तो न एयरपोर्ट बिकता, न रेलवे स्टेशन, न नौकरी जाती, ना निजीकरण होता। ििनजीकरण के साथ मनमोहन सिंह ने नौकरी का मुद्दा उठाकर युवाओं की नब्ज पर भी हाथ रखा है।
निजीकरण के लाभ व हानि
देश में इस वक्त निजीकरण के लाभ और हानि बताकर सरकार की नीतियों का समर्थेन व विरोध कर रहे हैं। सरकार के पक्ष में खड़े लोगों का कहना है कि निजीकरण से सेवा में गुणात्मक सुधार होता है। आमजन का कार्य आसानी से होने के साथ भ्रष्टाचाार में भी कमी आती है। इसके विपरीत सरकार के फैसले का विरोध करने वालों का कहना है कि निजीकरण से सेवा महंगी होने से साथ नौकरी कम होती है। निजीकरण से महंगाई भी तेजी से बड़ती से तथा सारी आमदनी बड़ी कंपनी को चलाने वाले पूंजीपतियों के हाथ में चला जाता है।